Tuesday, September 2, 2014

बदलते निज़ाम और आबोहवा पर कुछ पुरानी पुरसुकून यादें। 
धरोहरें !! ज़िंदा और हयात को बेहतरीन बनाते कुछ " तवारिखी " किस्से 
अख्तरी पिया के बहाने 
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ये नए निजाम का असर है या कुछ और 
मुसलमानों के खिलाफ मुहिम चला दी है।
अब हम तो अख्तर पिया (नवाब वाजिद अली शाह ) के रियाया हैं।
हमारे अख्तर पिया ने अगस्त 8, 1855 को गर्भवती देवकी का किरदार निभाते हुए कृष्ण को जन्मा था। फिर बाद को अंग्रेजों ने उनको जलावतन कर दिया।
कितनी ठुमरी दादरा, चैती हमारे अख्तर पिया ने रची।
आज भी उसे सुन, गा कर लोग नामवर हो रहे हैं।
जब जा रहे थे कलकत्ते के मटिया बुर्ज अख्तर तो लिखा......
सारे अब शहर से होता है ये अख्तर रुकसत
आगे बस अब नही कहने की है मुझको फुर्सत
हो न बरबाद मिरे मुल्क की यारब ख्ल्कत
दरो दीवार पर हसरत की नजर करते हैं
रुख्सते अहले वतन हम तो सफर करते हैं।
जबको कलकत्ते को सफर किया अख्तर पिया ने तो गौसनगर की हिन्दु औरतों ने चूड़िया तोड़ी। कटरा विजनबोग में दुपट्टे फैंके।
कोई साध्वी, मंडलेश्वर, बाबा, साधु न भरमाया पाएगा हमें।
पैबस्त हैं हमारे दिल में अख्तर पिया।
साथ रहेंगे। एक दूजे के दिल में रहेंगे।
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कहते है कि उस वक़्त यह खबर भी उडी की वाज़िद अली शाह गिरफ्तार कर के लन्दन ले जाये जा रहे है.……… तो क़ैसरबाग़ में कुछ हिन्दू औरतों ने यह भी दुआएं मांगी थी.……… " हज़रत जाते है लन्दन , कृपा करो मोरे रघुनन्दन " यह वह मआशरा है जहाँ " रघुनन्दन " भी वाज़िद अली शाह " अख्तरी पिया " के कृपानिधान थे।
जबकि किताबो में दर्ज़ है की अख्तरी पिया को फिरंग जब लिए जा रहे थे तो कटरा विजन बेग (मेरी मम्मी की बुआ का घर ) की महिलाओं ने शोक में अपने दुपट्टे उतार के छतों से नीचे फेंके थे तो वही दूसरी तरफ गौस नगर की हिन्दू महिलाओं ने अपनी चूड़िया तोड़ के सोग व्यक्त किया था।
यह हमारा शहर हमारा मुलुक
इस पे आंच न आने देंगे
हम लड़ेंगे
ज़िंदा ख्वाहिशो के लिए
उन हसीं सपनो के लिए
जो हमारे ज़िंदा होने का सुबूत है